‘‘हिम्मते मर्दा मददे खुदा’’

संतोष कुमार – अध्यक्ष राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन

यह लोकोक्ति काफी प्रसिद्ध हे कि यदि आदमी में हिम्मत – हौसला हो तो बहुत कुछ करने में कामयाब हो सकता है। प्रायः देखा गया है कि अपने सुकर्मों एवं श्रम बल से आम पुरूश ही पुरूषोत्तम का दर्जा प्राप्त कर लेता है। ऐसे ही श्रम पथ के पथिक एवं एक खास व्यक्त्तिव का नाम है – संतोषकुमार – अध्यक्ष राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन एवं सचिव डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह फाउंडेशन । जिन्होनें कम्प्यूटर शिक्षण प्रशिक्षण के क्षेत्र में ‘राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन ’ चलाकर आई.टी. के आकाश में चमकता सितारा के रूप में प्रतिश्ठापित किया है ।

संतोष कुमार का जन्म 18 दिसम्बर 1974 को बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री एवं आधुनिक बिहार के निर्माता बिहार केसरी डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह की जन्मस्थली खनवाँ नवादा जिला के नरहट थाना अन्तर्गतद्ध है। प्रारंभिक शिक्षा से स्नातक तक की शिक्षा पटना में ही हुआ । स्कूली शिक्षा के समय से ही इलेक्ट्रोनिक्स में बहुत अधिक रूचि रखते थे । सन् 1992 में वो विशाखापत्तनम् (आन्ध्र प्रदेश) जाने का अवसर मिला और आगे कम्प्यूटर शिक्षा इसी शहर में करने का निर्णय लिया । कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त करने के क्रम में पिताजी को एक पत्र लिखा गया था कि मेरी परीक्षा बहुत अच्छा गया है और हमें 99 प्रतिशत अंक आने कि उम्मीद है और इसी पत्र के जवाब में पिताजी ने लिखा था कि ‘‘मुझे तुमहारे नम्बर से कोई मतलब नहीं है लेकिन बेटा इतना पढ़ो की दूसरे को पढ़ाने का लायक बनों । ’’ पिता का यह जवाब ही इतने बड़े संस्थान के जन्म का आधार रहा । समान्य कुल परिवार में जन्में पले-पढ़े श्री कुमार ने अपने बुद्धि कौशल, दिन-रात की कड़ी मेहनत एवं प्रतिभा के बल पर न सिर्फ अपने माता-पिता के नाम यश की बृद्धि की है बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष वर्ष में बिहार का नाम रौशन किया है ।

जिस तरह उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र ने राजा-रानी परिकथाआंे, जातक कथाओं विशयक मिथक को तोड़ते हुए गाँव समाज, खेत खलिहान एवं आम आदमी के समस्याओं को मूल विशय बनाते हुए नये शिल्प को जन-मानस के हृदय में स्थापित किया था ठीक उसी प्रकार आसीएसएम ने संपूर्ण भारतवर्ष में सस्ते दर पर कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान करने वाली अग्रणी संस्था के स्वरूप को सृजित और सुस्थापित कया। जब कम्प्यूटर का प्रचलन मुख्य रूप से देश के सभ्रांत लोगों तक हीं सीमित था, उसी वक्त संकल्प लिया गया कि विज्ञान के इस वरदान को देश के जन-जन तक पहुंचाना है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वर्ष 1995 में राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन की शुरूआत विशाखापत्तनम् (आन्ध्र प्रदेश) से की गई। अत्यंत अल्प-शुल्क, स्तरीय अध्ययन सामग्री, योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों की समर्पित सेवा के कारण देखते हीं देखते देश भर में काश्मीर से कन्याकुमारी तक लगभग 2000 केन्द्र सफलतापूर्वक चलने लगे। आर.सी.एस.एम. के कम्प्यूटर साक्षरता अभियान ने रंग लाया। परिणाम स्वरूप देश के मध्यवर्गीय एवं निम्नवर्गीय परिवारों के लाखों नौजवानों के सपनों को नये पंख लग गये। अबतक आर.सी.एस.एम. के लोक कल्याणकारी नीतियों के कारण लगभग सात लाख नौजवान कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त कर देश के नवनिर्माण में अपना सक्रीय योगदान दे रहे है।

आर.सी.एस.एम. कम्प्यूटर साक्षरता को सार्वभौम एवं सर्वव्यापी बनाने हेतु समय-समय पर अपने विभिन्न कार्यक्रमों को लेकर सामने आया है। इसी कड़ी में मिशन चला गाँव की ओर, कम्प्यूटर शिक्षा-जन शिक्षा, सरल योजना, कम्प्यूटर शिक्षण प्रशिक्षण योजना आदि सर्वाधिक सफल एवं प्रशंसनीय रहे हैं। आर.सी.एस.एम. की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके पद चिन्हों का अनुकरण करते हुए इसके नाम से मिलते जुलते अनेक संस्थान खोले गये। अतः आर.सी.एस.एम. को कम्प्यूटर साक्षरता अभियान की जननी कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। आर.सी.एस.एम. ने जो राह दिखाई वह नजीर बन गई। इसके लिए आसीएसएम ने बतौर विश्वविद्यालय की तरह चलाने का काम किया। महंगे कम्प्यूटर शिक्षा को सहज सुलभ बनाते हुए आम लोगों के द्वार तक पहुंचाने का जो महती कार्य प्रारंभ किया वह काबिले तारीफ है।

विदित है कि इस क्षेत्र की अधिकतर संस्थाएं अर्थ लाभ को ध्यानगत करते हुए बड़े नगरों, महानगरों तक ही सीमित थी किन्तु आसीएसएम ने इस खाई को पटते हुए न सिर्फ नगरांे एवं शहरों के विद्यार्थीयों को कम्प्यूटर ज्ञान तथा कम्प्यूटर तकनीक ज्ञान से सुसज्जित करने का बीड़ा उठाया। आसीएसएम के अभियान गाँव-गाँव तक कम्प्यूटर शिक्षा फैलाना है। हमारी कामना है कि हम देश के निचले स्तर पर गुजर-वसर करने वाले लोगों को भी कम्प्यूटर शिक्षा की तकनीकी ज्ञान प्रदान कर देश को आई.टी. युक्त बनाने में अपनी उर्जा और बहुमुल्य समय लगायें। साथ ही सस्ते दर पर कम्प्यूटर संबंधी जीवनोपयोगी एवं व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करते हुए देश की श्रम शक्ति का विकास कर गाँव में निवास करने वाले नागरिकों को भी आत्मनिर्भर तथा अधिकार संपन्न बनाया जाय।

आज राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन अपनी विशिष्ट शिक्षण शैली अल्पतम् शुल्क स्तरीय एवं आधुनिकतम् पठन सामग्री, न्यूनतम फ्रेंचाइजी शुल्क एवं रॉयल्टी तथा राष्ट्रीय स्तर का प्रमाण-पत्र के कारण कम्प्यूटर साक्षरता के क्षेत्र में लोगों की पहली पसंद है। आज आर.सी.एस.एम देश का एक ऐसा कम्प्यूटर प्रशिक्षण संस्थान है, जिसकी समस्त सेवाएं ऑनलाईन है। आर.सी.एस.एम. ने देश के हिन्दी भाशी छात्रों की विशाल संख्या को देखते हुए सभी प्रकार के पठन सामग्री को हिन्दी भाषा में भी वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया है, जो हिन्दी भाशी छात्रों के लिए वरदान सावित हो रहा है। आज राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन के साथ जुड़ना गौरव का पर्याय बन चुका है।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था- ‘‘भारत की आत्मा गॉवों में बसती है। जब तक गॉवों का विकास नहीं होगा तब तक राश्ट्र का विकास संभव नहीं है। भारत गॉवों का देश हैं और यहाँ की 70-75 फिसदी जनता गाँवों में गुजर-बसर करती है। ग्रामीणों के शैक्षिक विकास में हीं राश्ट्रीय विकास निहित हैं। अब प्रश्न उठता हैं कि शैक्षिक स्तर को कैसे बढ़ाया जाय? इसका सीधा सा उत्तर होगा, अत्याधिक शैक्षिक केन्द्रों की स्थापना सूदूर गा्रमीण क्षेत्रों में की जाय।

आर.सी.एस.एम. कम्प्यूटर शिक्षा को सर्व-ग्राह्य एवं सर्व-सुलभ बनाने के लिए ‘नई सरल योजना ’ लेकर आयी है। इका मूल उद्देश्य देश में शत् प्रतिशत कम्प्यूटर साक्षरता को लक्ष्य को प्राप्त करना है। आज कम्प्यूटर शिक्षा बड़े शहरों से लेकर अनुमंडल एवं प्रखंड स्तर पर गली-कुचों, नुक्कड़ों एवं चौराहों पर कम्प्यूटर प्रशिक्षण के बड़े एवं छोटे केन्द्र असंगठित रूप में उपलब्ध हैं। ऐसे तमाम छोटे-बड़े प्रशिक्षण केन्द्रों/ट्यूशन केन्द्रों के द्वारा सस्ते दारों पर कम्प्यूटर प्रशिक्षण देने का दावा भी किया जाता है, लेकिन उनमें गुणवत्ता का सर्वथा अभाव होता है। फिर भी इस सच से कदापि इन्कार नहीं किया जा सकता है कि बिना इनके भारत जैसे विकाशील देश में संपूर्ण कम्यूटर साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करना असंभव है। लेकिन इन तमाम केंद्रों की कुछ परेशानियाँ हैं जैसे – अनुभवी शिक्षकों का अभाव, स्तरीय पाठ्य-पुस्तकों की कमी, अच्छे कम्प्यूटर लैब की अनुप्लब्धता तथा राश्ट्रीय स्तर के प्रमाण पत्र की कमी तथा प्लेसमेंट की सुविधा का नहीं होना। इन तमाम समस्याओं का समाधान अकेले किसी केन्द्र के बूते की बात नहीं है। इसके लिए आज फ्रेंचाईजी लेना प्रचलित व्यवस्था है। लेकिन अधिकांश केन्द्र किसी ब्रांड का फ्रेंजाइजी में अर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं। आर.सी.एस.एम. देश भर में फैले तमाम छोटे बड़े कम्प्यूटर प्रशिक्षण केंद्रों को गुणवत्तापूर्ण एवं रोजगारपरक कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु न्यूनतम फ्रेंचाइजी शुल्क एवं रॉयल्टी पर ऐसे सभी प्रशिक्षण केन्द्रों को सम्बद्धता प्रदान करेगी। आज सूचना तकनीकि के इस युग में आर.सी.एस.एम. द्वारा नामांकन, प्रमाण पत्र सत्यापन, नये प्रशिक्षण केन्द्रों की संबद्धता आदि समस्त सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध करा दी गयी है, जो कम्प्यूटर साक्षरता अभियान को गति प्रदान करेगी।

उन्होंने अपने प्रारंभिक दौर का स्मरण करते हुए कहा कि जब मैं इस दिशा में पहला कदम रखा तो दिन में व्याख्यता का कार्य करता और शाम में हॉफ पैन्ट पहनकर संस्थान का पोस्टर चिपकाता था किन्तू अन्तर मन में हौसला अफजाई का दीप सदैव प्रज्जवलित होते रहता था। वह यह कि ‘‘हम्मते मर्दा मददे खुदा’’ जिससे मैं न सदैव सिख पाई।

कम्प्यूटर शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में हमने बहुत कुछ हासिल किया है, किन्तु अभी बहुत लंबा सफर तय करना बाकी है। हमारा हार्दिक प्रयास है कि भारत का हर नागरीक आई. टी. युक्त हो। इस महान् कार्य मं यदि समाज के साथ-साथ सरकार का भी सहयोग प्राप्त हो तो इस लक्ष्य को समय पूर्व हीं प्राप्त किया जा सकता है। जैसा की हम जानते हैं कि भारत गाँवों का देश है। यहाँ कृशि को आई.टी. से जोड़कर भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा सकता है। आर.सी.एस.एम. कम्प्यूटर साक्षरता के साथ-साथ कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत करने एवं ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को स्तरीय एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने की दिशा में भी अग्रसर है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आधुनिक बिहार के निर्माता डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह की स्मृति में डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह फाउंडेशन का गठन कर अपनी जन्मभूमि डॉ0 श्रीकृष्ण ग्राम खनवाँ जो आजादी के लगभग 63 वर्ष बीतने के बाद भी उपेक्षित एवं विकास की किरणों से कोसों दूर है, को प्रयोग के रूप में लिया गया है। वह व्यक्ति जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम एवं सम्पूर्ण बिहार के विकास में अपना सर्वस्व न्योछाबर कर दिया, उसकी जन्मस्थली ‘खनवां’ के विकास की बात तो दूर, वहां उसकी स्मृति को जीवित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कोई भी प्रयास नहीं हुए ।

उपेक्षा का शिकार बने ‘खनवां’ में बिहार केसरी की स्मृतियों को पुनर्जीवित करने व इसे विकास के पथ पर अग्रसर करने हेतु ‘डा0 श्रीकृष्ण सिंह फाउंडेशन’ द्वारा ‘मिशन श्रीकृष्ण ग्राम खनवां’ के तहत एक पहल शुरू की गई है। इस पहल के अंजाम तक पहुचाने के लिए इस संस्था ने बिहार व केन्द्र सरकार के खनवां को आदर्श ग्राम के रूप में विकसित करने, गुणवत्ता युक्त विद्यालय, महाविद्यालय व तकनीकी शिक्षा संस्थान खोलने, गांव के कृशि एवं लघु व कुटीर उद्योगों हेतु आवश्यक संसाधन जुटाने आदि के लिये आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की है। डा. श्रीकृश्ण सिंह फाउंडेशन की श्रीबाबू की स्मृतियों को कायम रखने हेतु खनवां का नाम ‘डा. श्रीकृष्ण ग्राम खनवां करने, तिलैया रेलवे जंक्षन का नाम बदल कर ‘श्रीकृष्ण सिंह जंक्षन’ करने, खनवां में उनकी आदमकद प्रतिमा लगाने तथा पुस्तकालय का निर्माण करने की भी मांग की है, ताकि भावी पीढ़ी उनके जीवन कृत्यों को जानकर प्रेरित हो सके ।

फाउंडेशन ने उनके नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना की भी मांग की है। श्रीबाबू एक महान शिक्षाविद् थे । जवाहर लाल ने नेहरू के शब्दों में ‘श्रीबाबू का ज्ञान बड़े से बड़े पुस्तकालय की पुस्तकों में समाहित ज्ञान के समान था।’ अगर बिहार सरकार इस महान शिक्षा मनीशी के नाम पर विश्व विद्यालयकी स्थापना करती है, तो यह उनके प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

संतोष कुमार का स्वपन है एक मॉडल स्कूल के रूप में बन्दे मातरम् विद्या निकेतन की स्थापना करना है। जहाँ गौ एवं कृषि पर आधारित आय के द्वारा गरीब-मेधावी बच्चों को निःशुल्क शिक्षण गुरूकुल परंपरा के अनुरूप आश्रम आधारित पद्धति के अन्तर्गत प्रदान किया जाएगा।

राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन पिछले 17 वर्षों से अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक रूप से अपनी सामाजिक जवाबदेही का निर्वहन कर रही है। वास्तव में राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता मिशन ने कम्प्यूटर शिक्षा को आज देश के निर्धन लोगों तक पहुंचाकर राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में अपनी आत्मीय आहूति दी है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।